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सीमा पर खड़ी एक हिम्मत …

सत्य ,साहित्य और समाज....
सत्य ,साहित्य और समाज....
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सीमा पर खड़ी एक हिम्मत …
जब हम खाते है
तब वो सीमा पर दस्तक लगाते है
एक सपना लिए
एक जज्बा लिए
अपने लिए नहीं हमारे लिये.. …
जिसके घर वालो के कराहने
पर भी सरकार की अकड़ नहीं जाती
उस सरकार की हर क्षण रक्षक
संसद और विधानसभा उदाहरण है
दुश्मनों की भक्षक है ….
खेत, खलिहान, मैदान में खेल सकता था
फिर भी बम और गोलियों से किया प्यार
माँ और बीबी के पल्लू में छिप सकता था
फिर भी उसने मौत से एक खेल खेला
हर क्रांति और शांति के दूत
खुद की कहानी और लालसा दफ़न किये
हर मौसम में खड़ा
एक बन्दूक, टोपी और वर्दी के साथ
हम सोते है लीलाये करते है
और हर क्षण नए अंकुर’ण से जीते है
क्योंकी
-सीमा पर खड़ी है एक हिम्मत …
#YugalVani

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